Onion Price Hike: प्याज के दाम में रिकॉर्ड वृद्धि, क्‍यों हुई और किसकी है जिम्‍मेदारी

Onion Price Hike: प्याज के दाम में रिकॉर्ड वृद्धि, क्‍यों हुई और किसकी है जिम्‍मेदारी

Onion Price Hike: प्याज के दाम में रिकॉर्ड वृद्धि, क्‍यों हुई और किसकी है जिम्‍मेदारी?

प्याज की कीमतों में इन दिनों रिकॉर्ड वृद्धि हो रही है, और इसका असर न केवल किसान बल्कि उपभोक्ता पर भी साफ तौर पर देखा जा रहा है। यह समस्या मुख्य रूप से सरकारी नीतियों के कारण है, जिनकी वजह से पहले किसानों को भारी नुकसान हुआ और अब कंज्यूमर्स को महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। आखिरकार इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है?

प्याज के थोक दाम में रिकॉर्ड वृद्धि: जानिए क्या हो रहा है?

प्याज की महंगाई इन दिनों पूरे देश में एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है। सोलापुर मंडी में प्याज का थोक दाम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, जो इस बात का संकेत है कि आने वाले महीनों में प्याज की कीमतों में और भी वृद्धि हो सकती है। प्याज की कीमतें इस समय 7100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई हैं, जो कि पिछले कई सालों में सबसे अधिक हैं। यह बढ़ी हुई कीमतें न केवल उपभोक्ताओं के लिए परेशानी का कारण बन रही हैं, बल्कि किसानों के लिए भी कई तरह के सवाल खड़े कर रही हैं।

महाराष्ट्र, जो देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है, प्याज के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है। महाराष्ट्र में तो प्याज के दाम की वृद्धि से देशभर में इसका असर महसूस किया जा रहा है। विशेष रूप से, लासलगांव जैसी प्रमुख मंडियों में प्याज की कीमतों में तेजी देखी जा रही है, जो पूरी तरह से थोक व्यापार की दिशा तय करती हैं। इस तरह की स्थिति में, यह सवाल उठता है कि इसके पीछे की असली वजह क्या है?

प्याज के थोक दाम में यह वृद्धि मुख्य रूप से फसल के खराब होने के कारण हुई है। मानसून की स्थिति में असमानताएं और कुछ हिस्सों में बेमौसम बारिश ने प्याज की फसल को प्रभावित किया है। इस समस्या को और बढ़ाते हुए, नदियों का स्तर कम होने और सिंचाई की सुविधा में कमी के कारण प्याज के उत्पादन में गिरावट आई है। इसके साथ-साथ, कुछ स्थानों पर किसानों के बीच प्याज के बीज की गुणवत्ता में भी कमी आई है, जिससे उत्पादन पर और भी असर पड़ा है।

किसान पहले नुकसान में थे, अब उपभोक्ता परेशान

प्याज की कीमतों में उतार-चढ़ाव किसी भी कृष‍ि उपज के उत्पादन और मांग के साथ-साथ सरकारी नीतियों से भी प्रभावित होते हैं। पिछले वर्ष प्याज की बंपर पैदावार के बावजूद किसान अपनी उपज को बहुत ही कम दामों पर बेचने को मजबूर हो गए थे। महाराष्ट्र में तो कुछ किसानों को अपनी प्याज 1-2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचनी पड़ी थी, जिससे उन्हें भारी नुकसान हुआ। इस स्थिति में सरकार ने किसानों के लिए मुआवजा देने का ऐलान किया था, लेकिन उत्पादन लागत के मुकाबले यह मुआवजा बहुत कम था।

अब इस वर्ष, प्याज की कीमतों में भारी वृद्धि ने उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है। खासकर उन परिवारों के लिए यह समस्या बड़ी हो गई है जिनकी आय सीमित है। जब प्याज की कीमतें बढ़ती हैं, तो न केवल यह एक जरूरी खाद्य वस्तु के रूप में परिवारों पर दबाव डालती है, बल्कि इससे पूरे खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होती है, जो महंगाई का स्तर और बढ़ा देती है। इस प्रकार, इसका असर गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों पर सबसे ज्यादा पड़ता है।

केंद्र सरकार ने प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया था, लेकिन ये उपाय समय पर लागू नहीं हो सके। इसके कारण उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिली, और किसान भी अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं पा सके। इस समय जो स्थिति बनी हुई है, उसमें किसान और उपभोक्ता दोनों ही प्रभावित हो रहे हैं।

सरकारी नीतियों का असर और किसानों की स्थिति

सरकारी नीतियां प्याज की कीमतों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। जुलाई-अगस्त 2023 में प्याज के दाम में कुछ सुधार हुआ था, जिससे किसानों को उम्मीद बंधी थी कि वे पिछली हानि की भरपाई कर सकेंगे। लेकिन, फिर सरकार ने प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लागू कर दी, जिसके बाद प्याज के दाम गिरने की बजाय और बढ़ गए।

अगस्त 2023 में जब प्याज के दाम गिरने लगे थे, तो सरकार ने 17 अगस्त को प्याज पर 40 प्रतिशत एक्सपोर्ट ड्यूटी लागू कर दी, जिससे प्याज के निर्यात पर रोक लग गई और किसानों को अपनी उपज के उचित मूल्य के लिए संघर्ष करना पड़ा। इसके बाद, 7 दिसंबर को सरकार ने प्याज के निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी, जिससे घरेलू बाजार में प्याज के दाम और बढ़ गए। इस कदम के परिणामस्वरूप प्याज की उपलब्धता घट गई, जिससे थोक कीमतों में वृद्धि हुई।

सरकार ने कुछ समय पहले किसानों के लिए प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को 800 डॉलर प्रति मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया था, जिससे प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिल रही थी। हालांकि, इन निर्णयों ने निर्यातकों और किसानों को नुकसान पहुँचाया, क्योंकि निर्यात के द्वारा अच्छी कमाई की उम्मीद थी।

इस समय, सरकार को प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए विशेष कदम उठाने की आवश्यकता है। खासकर, प्याज की उपज को सस्ते दामों पर बेचने की स्थिति को कम करने के लिए किसानों के लिए एक सुनिश्चित कीमत तय की जानी चाहिए। इसके अलावा, सरकार को प्याज के उत्पादन में कमी आने के कारणों का पता लगाने के लिए जांच करनी चाहिए और अगले कुछ वर्षों में प्याज की उपज को बढ़ाने के लिए ठोस योजना बनानी चाहिए।

आने वाले दिनों में प्याज के दामों में और बढ़ोतरी?

मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं है कि प्याज की कीमतों में और वृद्धि हो सकती है। कई राज्यों में किसानों ने प्याज की खेती को कम कर दिया है, जिससे प्याज की उपलब्धता घटेगी। वहीं दूसरी ओर, निर्यात पर लगी रोक और सरकार द्वारा प्याज पर किए गए शुल्कों का असर घरेलू बाजार पर पड़ने वाला है। इन नीतियों का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को सस्ती कीमतों पर प्याज उपलब्ध कराना था, लेकिन इसने व्यापारियों और किसानों के बीच तनाव उत्पन्न कर दिया है।

किसानों की तरफ से विरोध प्रदर्शन और मांग की गई है कि सरकार को प्याज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए बेहतर कदम उठाने चाहिए। हालात ऐसे बन गए हैं कि सरकार को प्याज के थोक दामों को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार अगले कुछ महीनों में स्थिति को संभालने के लिए कड़े कदम नहीं उठाती, तो प्याज के दाम और भी अधिक बढ़ सकते हैं, जो कि उपभोक्ताओं के लिए बड़ी चिंता का विषय होगा। इन परिस्थितियों में, यह जरूरी है कि सरकार किसानों के लिए एक स्थिर और लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करे ताकि वे अपनी उपज को उचित मूल्य पर बेच सकें और साथ ही उपभोक्ताओं को भी राहत मिले।

निष्कर्ष: समाधान क्या हो सकता है?

प्याज की बढ़ी हुई कीमतों को लेकर सरकार को तुरंत प्रभाव से कदम उठाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, किसानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य मिलना चाहिए ताकि वे अपनी मेहनत का पूरा फल पा सकें। इसके लिए सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को मजबूत करना चाहिए। साथ ही, प्याज की उपज को स्टोर करने के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है, ताकि जब उत्पादन अधिक हो, तो उसे लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके और आवश्यकतानुसार उसे बाजार में लाया जा सके।

दूसरी ओर, उपभोक्ताओं के हित को ध्यान में रखते हुए, सरकार को प्याज के निर्यात पर लगाई गई रोक को धीरे-धीरे हटाने पर विचार करना चाहिए, ताकि घरेलू बाजार में प्याज की आपूर्ति बनी रहे। इसके अलावा, प्याज के दामों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए, बाजार की आपूर्ति और मांग के अनुसार नीतियों में लचीलापन होना चाहिए।

अंत में, यदि सरकार और किसान दोनों मिलकर सही कदम उठाते हैं, तो प्याज की कीमतों में असमानता को नियंत्रित किया जा सकता है और यह समस्या स्थायी रूप से हल हो सकती है।

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